राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं :– राजस्थान की प्राचीन सभ्यताओं के बारे में आज आपको यहां पर विस्तृत और डिटेल में पूरी जानकारी बताई जाएगी राजस्थान एक प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ा हुआ है यहां पर बहुत से पुरानी सभ्यता है आज भी मौजूद है जिसके बारे में आप से विभिन्न परीक्षाओं और में प्रश्न पूछे जाते हैं जिनमें बहुत से प्रश्न सभ्यताओं से जुड़े हुए हैं आज आपको राजस्थान की प्राचीन सभ्यताओं के बारे में संक्षेप में जानकारी यहां बताई जाएगी राजस्थान के सभ्यताओं में कालीबंगा सभ्यता जो आहड़ सभ्यता बालाथल सभ्यता चंद्रावती सभ्यता जैसी अनेक सभ्यताओं के बारे में आपको यहां विस्तृत जानकारी बताएं जाएगी इन सब बातों में विभिन्न परीक्षाओं में महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं।
कालीबंगा सभ्यता
उत्तरी राजस्थान मैं घग्घर नदी के किनारे सिंधु घाटी सभ्यता के 25 स्थल खोजे गए हैं जिनमें से कालीबंगा एक प्रमुख है। कालीबंगा स्थल हनुमानगढ़ जिले में सरस्वती नदी के तट पर 4500 वर्ष पहले बसा हुआ था। कालीबंगा में मुख्य रूप से नगर नियोजन के दो टीले प्राप्त हुए हैं। इन टिलों में एक पूर्व टिला है जहां से साधारण बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। और पश्चिम टिले में एक दुर्ग है जिसके चारों ओर सुरक्षा प्राचीर हैं। कालीबंगा में मिले दोनों टीलों के चारों ओर सुरक्षा प्राचीर बनी हुई थी। कालीबंगा में जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं तो संसार के सबसे प्राचीनतम साक्ष्य में एक है। कालीबंगा सभ्यता में दीवारें ईंटो की बनती थी और जिसे मिट्टी के गारों से जोड़ा जाता था। कालीबंगा सभ्यता की दीवारें मजबूत और टिकाऊ बनी होती थी। कालीबंगा सभ्यता में व्यक्तिगत और सार्वजनिक ना लिया तथा कूड़ा डालने के मिट्टी के बर्तन और नगर निगम के सफाई की अव्यवस्था के अंग थे। कालीबंगा सभ्यता में वर्तमान में यहां घग्र नदी बहती है जो प्राचीन काल में सरस्वती नदी के नाम से जानी जाती थी। कालीबंगा सभ्यता में धार्मिक प्रमाण के रूप में अग्निवेदियों के साथ से मिले हैं। कालीबंगा सभ्यता में मिट्टी के बर्तनों और मोरों पर जो लिपि अंकित पाई गई वह सैंधव लिपि है जिसे अभी पढ़ा नहीं जा सकता। कालीबंगा सभ्यता में पानी के निकास के लिए लकड़ी व ईंटो की नालियां बनी हुई मिली थी। तमर से बने कृषि के औजार भी यहां की आर्थिक उन्नति के परिचायक है। कालीबंगा सभ्यता में नगर योजना सिंधु घाटी की नगर योजना के समान है। कालीबंगा सभ्यता में निवासियों की मृतक के प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने के वाली तीन समाधिया मिली है। कालीबंगा सभ्यता के हाय्स का कारण संभवत सूखा , नदी मार्ग में परिवर्तन ने कारण माने जाते हैं। कालीबंगा सभ्यता की उत्खनन पांच चरणों में पूरी हुई थी।
आहड़ सभ्यता
आहड़ सभ्यता वर्तमान में राजस्थान में उदयपुर जिले में स्थित है। उदयपुर जिले में स्थित आहड़ सभ्यता दक्षिण पश्चिम राजस्थान की कांस्य युगीन संस्कृति का मुख्य केंद्र था। आहड़ सभ्यता संस्कृति बेडच , बनास की घाटियों में विकसित हुई थी। आहड़ सभ्यता लगभग 5000 वर्ष पुरानी मानी जाती है। आहड़ सभ्यता के अनेक उत्खनन के इस तरह से पता चलता है कि इसकी प्रारंभिक बनावट से लेकर 18वी सदी तक यहां कई बार बस्तियां बसी और उजड़ गई। ऐसा लगता है कि आहड़ सभ्यता के आसपास तांबे की उपलब्धता होने के कारण सतत रूप से इस स्थान के निवासी इन धातुओं के उपकरणों को बनाते रहे और उसे एक ताम्र युगीन कौशल केंद्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आहड़ सभ्यता में लगभग 500 मीटर लंबे धूलकोट का टीला आहड़ सभ्यता का प्रमुख केंद्र स्थान माना जाता है। आहड़ सभ्यता में तांबे की कुल्हाड़ी या प्रस्तर के औजार धर्म कीमती प्रस्तर की वस्तुएं आदि सामग्री यहां से प्राप्त हुई है। आहड़ सभ्यता में नगर योजना के अंतर्गत मकानों की योजना में आंगन या गैलरी या खुला दरवाजा रखने की स्थान की व्यवस्था थी। एक परिवार में चार से छह बड़े चुलों का होना आहट में बड़े परिवारों या सामूहिक भोजन बनाने की व्यवस्था पर प्रकाश डालते हैं। आहड़ सभ्यता से खुदाई से प्राप्त बर्तनों तथा अनेक खंडित टुकड़ों से हमें उस युग में मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का अच्छा परिचय प्राप्त होता है। आहड़ सभ्यता की संस्कृति का व्यापकता एवं विस्तार गिलूंड , बालाथल , बागोर तथा अन्य आसपास के पुरातात्विक स्थानों से प्रमाणित है। आहड़ सभ्यता का संपर्क नवदातोली नागदा एरन कथा तथा उत्तर गुजरात में कच्छ तक अर्थात इस सभ्यता का संपर्क 4000 वर्ष पुरानी सभ्यता से भी था। कालीबंगा से प्राप्त काले व लाल मिट्टी के बर्तनों के आकार उत्पादन का कौशल की समानता से पता चलता है।
बालाथल सभ्यता
बालाथल सभ्यता वर्तमान में उदयपुर जिले में है। उदयपुर नगर से पूर्व में 42 किलोमीटर दूर ऊंठाला गांव में वर्तमान में वल्लभनगर नाम से बसा हुआ है। उपखंड मुख्यालय है। इसके उत्तर में बालाथल गांव स्थित है। बालोतरा गांव के पूर्व दिशा में एक टिला है। बालाथल सभ्यता में टिले के उत्खनन का कार्य मार्च 1993 डक्कन कॉलेज , पुणे के डाँ. वी.एन. मिश्रा के नेतृत्व में राजस्थान स्टडीज ,राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के डॉक्टर देव कोठारी , डॉ ललित पांडे एवं डॉक्टर जीवन खरकवाल की देखरेख में किया गया। बालाथल सभ्यता में उत्खनन का कार्य 7 वर्षों तक किया गया था। बालाथल सभ्यता का यह इस तरह की तरह ही विस्तार है यहां पर भी ताम्र पाषाण युग की संस्कृति के दर्शन होते हैं। बालाथल सभ्यता लगभग 3200 ईसा वर्ष पूर्व तक अस्तित्व में आ चुकी थी। बालाथल सभ्यता के निवासी तांबे से बने हुए उपकरणों और वस्तुओं का प्रयोग करते थे इनमें कुल्हाड़ी चाकू उस्तरा तथा बाण के फलक का प्रयोग करते थे। बालाथल सभ्यता में पत्थर के बने हुए औजार भी मिले हैं इसका कारण यहां के लोगों को तांबा सुगमता से उपलब्ध होना माना जा सकता है। बालाथल सभ्यता से प्राप्त विशेष आकार प्रकार के चमकदार मिट्टी के बर्तन दो प्रकार के हैं एक खुरदरी दीवारों वाले नेता दूसरी चिकनी मिट्टी की दीवारों वाले। बालाथल सभ्यता में काले लाल और गहरे लाल रंग लिए ऐसे बर्तनों के बाहर और भीतर चमकदार लेप किया हुआ मिलता है। यह विशेष प्रकार के बर्तन बनाए नहीं जाते हैं थे अभी तो अन्य क्षेत्रों से निर्यात किया जाते थे। बालाथल सभ्यता के किले के मध्य एक विशाल अधूरा स्वरूप सुरंजना को दी गई जिसकी दीवारें लगभग 3 पॉइंट 15 मीटर ऊंची तथा लगभग 5 मीटर मोटी है। यह दूरी लगभग 5600 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला था। यह दुरग पत्थरों तथा मिट्टी से बनाया गया था। बालाथल सभ्यता की खुदाई में लगभग 11 कमरों के बड़े भवन की रचना भी प्राप्त हुई थी जो ताम्र पाषाण काल की द्वितीय अवस्था में निर्मित हुए थे। बालाथल सभ्यता में आहड़ सभ्यता की तरह ही ताम्र पाषाण काल की सभ्यता में तांबा खिलाने की बेटियों के अवशेष मिले हैं उसी प्रकार वाला तेल में लोहा गलाने की बेटियों के अवशेष मिले हैं। आठ सभ्यता के लोग दक्षिणी राजस्थान के पहले किसान पशु पालक मिट्टी का बर्तन बनाने वाले तथा धातुओं के औजारों के निर्माता थे।
चंद्रावती सभ्यता
चंद्रावती सभ्यता सिरोही जिले में स्थित है। यह सभ्यता सिरोही जिले में माउंट आबू की तलहटी में आबू रोड के निकट चंद्रावती के नाम से एक प्राचीन शहर के अवशेष है। यह प्राचीन शहर शिवानी नदी के दाएं तट पर बसा हुआ था तथा लगभग 50 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। चंद्रावती सभ्यता की खोज सन 1822 में कर्नल जेम्स टॉड द्वारा की गई थी। चंद्रावती सभ्यता की खोज 1880 में महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय बड़ौदा के पुरातत्व विभाग द्वारा इस प्राचीन शहर तथा संबंधित चित्र का गहन सर्वेक्षण किया गया था। भक्ति गीत चंद्रावती सभ्यता 2013 – 2014 में इंस्टिट्यूट ऑफ राजस्थान इंडस्ट्रीज जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय उदयपुर एवं राजस्थान राज्य पुरातत्व विभाग जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में डॉक्टर जीवन खर्कवाल के नेतृत्व में चंद्रावती का पुरातात्विक उत्खनन किया गया था। चंद्रावती सभ्यता में शहर के पश्चिमी भाग में एक विशाल किले के अवशेष है जो लगभग 26 बीघा में फैला हुआ है। बालाथल सभ्यता में इस किले के मध्य भाग में 33 मंदिर समूह के अवशेषों जो हिंदू तथा जैन धर्म से संबंधित है अधिकांश मंदिर इंटर द्वारा निर्मित उनती जगह पर निर्मित है। यहां बड़ी संख्या में मूर्तियां माउंट आबू संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है। स्थापत्य के दृष्टिकोण से आठवीं सदी से लेकर 15 वीं शताब्दी के मध्य रखा जाता है। उत्खनन में शहर के पूर्वी हिस्से में 2 किलो खोजे गए हैं इनमें एक किला तो पूर्णत वर्गाकार तथा 60 बाय 60 मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस किले में आयताकार तक गोल ब्रिज बना कर सुरक्षा दीवार को मजबूती प्रदान की गई है। इस सभ्यता के उत्खनन में तीन विशाल भवनों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। एक कमरे में बड़ी संख्या में अनेक प्रकार के अनाजों के जले हुए बीज तथा अनाज पीसने की घट्टी का भाग भी खोजा गया था। चंद्रावती सभ्यता में भवनों में घोड़े और मनुष्यों की मरण मूर्तियां मिट्टी व लोहे की वस्तुएं प्राप्त हुई थी सभी भवन व फर्श ईंटो के बने हुए थे। किले का प्रवेश द्वार पर समझ 1325 का एक अभिलेख लिखा हुआ मिला है। चंद्रावती सभ्यता के अभिलेख तथा ताम्रपत्र माउंट आबू के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं यह परमार शासकों की राजधानी मानी जाती है जिनमें यशोदा वालों तथा धारा वर्ष जैसे प्रतापी राजा भी हुए हैं परमाणुओं के पश्चात इस स्थल पर 14वीं शताब्दी में देवड़ा राजपूतों का अधिकार हो चुका था तथा 15 वी सताब्दी में आक्रमणों के कारण यह है नगर लगभग ध्वस्त हो गया था। चंद्रावती के उपयुक्त अवशेषों के नीचे एक अन्य प्राचीन बस्ती का अवशेष भी है या उत्खनन से स्पष्ट हुआ कि उपलब्ध पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर यह बस्ती छठी शताब्दी से नवी शताब्दी बीच हो सकती है। चंद्रावती के क्षेत्र से पाषाण कालीन उपकरण तथा अनेक शैल चित्र भी मिलने आता यह स्पष्ट किया जा सकता है कि पाषाण काल से ही मानव समाज चंद्रावती में उपस्थित आ मध्यकाल में व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण के केंद्र रहा था।
राजस्थान की प्रमुख सभ्यताओं के क्या-क्या प्रश्न बनते हैं ?
राजस्थान की लगभग सभी भर्तियों के अंदर राजस्थान की सभ्यताओं के बारे में प्रश्न पूछे जाते हैं। अतः राजस्थान की सभ्यताओं के बारे में भी ध्यान रखना अति आवश्यक है। राजस्थान के प्रमुख सभ्यताओं के बारे में जो प्रश्न बनते हैं वह सभी आपको ऊपर बताए गए हैं।
राजस्थान की प्रमुख सभ्यताएं के महत्वपूर्ण जानकारियां
राजस्थान की प्रमुख सभ्यताओं के बारे में आपको ऊपर जानकारियां बताई गई है। राजस्थान की प्रमुख सभ्यताओं की जानकारी ऊपर विश्लेषण रूप से बताई गई है। राजस्थान में सभ्यताओं के संबंध में जितने भी क्वेश्चन पूछे जाते हैं उन सभी की जानकारी ऊपर बताई गई है।