महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां निम्न है

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महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां निम्न है ; महाराणा कुंभा एक वीर योद्धा ही नहीं बल्कि कलाप्रेमी और विद्या अनुरागी शासक भी थे। इसी कारण महाराणा कुंभा को ‘युद्ध में स्थिर बुद्धि ‘कहा गया है। एकलिंग महात्म्य के अनुसार राणा कुंभा वेद ,स्मृति ,मीमांसा ,उपनिषद ,व्याकरण, राजनीति और साहित्य में बड़ा निपुण शासक था।

महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां
महाराणा कुंभा की सांस्कृतिक उपलब्धियां

महाराणा कुंभा के उपनाम तथा उनकी प्रमुख रचनाएं

महान संगीतज्ञ होने के कारण राणा कुंभा को अभिनव भरताचार्य तथा वीणा वादन प्रवीणेन कहा जाता था । कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति के अनुसार राणा कुंभा वीणा बजाने में निपुण था। महाराणा कुंभा ने संगीत राज , संगीत मीमांसा, संगीत क्रम दीपिका व सूड प्रबंध नामक ग्रंथ लिखे। संगीत राज के 5 भाग-पाठ रतन कोश, गीत रतन कोश , वाद्य रतन कोश , नृत्य रतन कोश तथा रस रतन कोश है। महाराणा कुंभा ने चंडीशतक की व्याख्या, जयदेव के संगीत ग्रंथ गीत गोविंद और सारंगदेव के संगीत रत्नाकर के टिकाए भी लिखी। महाराणा कुंभा ने महाराष्ट्र ,कन्नड़ तथा मेवाड़ी भाषा में 4 नाटकों की रचना की। महाराणा कुंभा का कामराज रतिसार नामक ग्रंथ 7 अगों में विभक्त है।

राणा कुंभा के प्रमुख दरबारी विद्वान

राणा कुंभा को ‘राणो रासो ‘भी कहा जाता है क्योंकि इनके दरबार में अनेक विद्वान रहते थे। राणा कुंभा के दरबार में एकलिंग महात्म्य का लेखक कान्ह व्यास तथा प्रसिद्ध वास्तु शास्त्री मंडन रहते थे। मंडन के प्रमुख ग्रंथ-देव मूर्ति प्रकरण, प्रासाद मंडन, राजवल्लभ ,रूपमंडन , वास्तुमंडन ,वास्तुशास्त्र और वास्तुकार नामक वास्तु ग्रंथ लिखे। मंडन के भाई नाथा ने वास्तु मंजरी और पुत्र गोविंद ने उद्धारधोरिणी ,कलानिधि ,एवं द्वारदीपिका नामक ग्रंथों की रचना की। कुंभा की पुत्री रमाबाई को ‘वागेश्वरी’ कहा गया है। कभी मेहा ने ‘तीर्थमाला’ नामक प्रसिद्ध रचना की जिसमें 120 तीर्थों का वर्णन है। कवि मेहा कुंभलगढ़ तथा रणकपुर जैन मंदिर के निर्माण के समय उपस्थित थे। हीरानंद मुनि को कुंभा अपना गुरु मानते थे और उन्हें ‘कविराज ‘की उपाधि दी। कविराज श्यामल दास की रचना ‘वीर विनोद के अनुसार मेवाड़ के कुल 84 दुर्गों में से अकेले महाराणा कुंभा ने 32 दुर्गों का निर्माण करवाया था

राणा कुंभा के निर्माण कार्य

राणा कुंभा ने सिरोही के निकट बसंतगढ किले का जीर्णोद्धार दस्तावेज। मेरो के प्रभाव को रोकने के लिए मचान के किले का निर्माण दस्तावेज। 1452 ई परमारो के प्राचीन अवशेष अचलगढ़ का पुनर्निर्माण विवरण। कुंभा द्वारा निर्मित कुंभलगढ़ किले का परकोटा 36 किमी लंबा है, जो चीन की दीवार के बाद दुनिया की सबसे ऊंची दीवार है। रणकपुर का प्रसिद्ध जैन मंदिर महाराणा कुंभा के समय में ही धारण शाह द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ शिलालेख में राणा कुंभा को धर्म और पवित्रता का अवतार तथा दानी राजा भोज व करण से बढ़कर बताया गया है। वह स्वयं को गुप्त सम्राटों के समान परम भागवत कहा करता था। उसने आदीवारा की उपाधि धारण की थी – ‘वसुन्धरोद्धरणादिवराहेण’।

विजय स्तंभ

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर स्थित 9 मंजिलें और 122 फीट ऊंचे विजय स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय की स्मृति में करवाया था। विजय स्तंभ का निर्माण प्रधान शिल्पी जेता व उसके तीन पुत्रो नापा पोमा व पुन्जा की देखरेख में हुआ। अनेक हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएं होने के कारण विजय स्तंभ को पौराणिक हिंदू मूर्तिकला का अनमोल खजाना कहा जाता है। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने पौराणिक देवालयों के अमूल्य कोष की संज्ञा दी है। विजय स्तंभ के मुख्य द्वार पर भगवान विष्णु की मूर्ति होने के कारण विजय स्तंभ को विष्णु ध्वज भी कहा जाता है। महाराणा स्वरूप सिंह के काल में विजय स्तंभ का पुनर्निर्माण करवाया गया। विजय स्तंभ ने १८५७ की क्रांति कार्यों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य किया।

राणा कुंभा के बारे में अन्य जानकारियां

महाराणा कुंभा के पिता का नाम मोकल तथा माता का नाम सौभाग्य देवी था। महाराणा कुंभा 1433 इसमें मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा था। राणा कुंभा ने अपने जीवन काल में बहुत से युद्ध में विजय प्राप्त की थी। राणा कुंभा के पिता की हत्या चाचा मेरा व मेहपा पवार नामक व्यक्तियों ने की थी। कुंभा को अपने अंतिम दिनों में उन्माद का रोग हो गया था। महाराणा कुंभा अपना अधिकांश समय कुंभलगढ़ दुर्ग में बिताता था। कुंभलगढ़ दुर्ग में है उसके सत्ता लोलुप पुत्र उदा ने 1468 इसी में महाराणा कुंभा की हत्या कर दी थी। महाराणा कुंभा एक महान ह

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