राजनीतिक आंदोलन 1919 से 1947

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भारत में अंग्रेजो के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन 1919-1947 के बीच में अनेक राजनीतिक आंदोलन हुए जो हमने नीचे आपको टॉपिक वाइज बताए गए हैं।

राजनीतिक आंदोलन 1919 से 1947
राजनीतिक आंदोलन 1919 से 1947

रॉलेक्ट एक्ट 1919

प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने यह वादे किए थे कि भारतीयों को अधिक से अधिक सुविधाएं मिलेंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ युद्ध के पश्चात उन्होंने भारतीयों को कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं कराई बल्कि उनके ऊपर आर्थिक शोषण प्रेस के कठोर नियम व अन्य गतिविधियां शामिल करती भारत की जनता अंग्रेजों के विरोध में डटी हुई थी अतः सरकार ने 1917 ईस्वी में सिवनी रोलेट की अध्यक्षता की एक बैठक आयोजित की जिसके अंतर्गत बनाए गए बिल को विधानमंडल में 19 मार्च 1919 को पास किया गया इस एक्ट के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति पर संदेह होता तो उसे कानूनन गिरफ्तार कर लिया जाता था उसे ना तो कोई वकील या फिर अपील करने का कोई अधिकार नहीं था इसे ही काला कानून कहा जाता था

जलियांवाला बाग हत्याकांड

13 अप्रैल 1919 में रोली एक्ट के विरोध में अमृतसर में जलियांवाला बाग की एक सभा बिठाई गई थी जिसमें 20000 आदमी इकट्ठे हुए थे जिनमें स्त्री पुरुष बच्चे बूढ़े सभी शामिल थे जनरल डायर ने उस में प्रवेश किया और गोली चलाने का हुक्म दे दिया सभी तरफ से गोलियां चलने लगी जब तक कि कारतूस खत्म नहीं हो गए थे सरकार के अनुसार 379 व्यक्ति मारे गए जबकि कांग्रेस समिति के अनुसार मरने वालों की संख्या हजार के लगभग इसीलए इस हत्याकांड को जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता हैं

असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन

असहयोग आंदोलन भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा के सम्मान में चलाया गया था तुर्की का खलीफा मुस्लिम लोगों के लिए धार्मिक रूप से प्रमुख था 19 अक्टूबर 1919 को पूरे देश में खलीफा दिवस मनाया गया ज्ञानी जी भी इस आंदोलन में शामिल हुए और कैसे हिंदी की उपाधि को लौटा दिया इस आंदोलन की समाप्ति 10 अगस्त 1920 को हुई जिसमें तुर्की को भारत से अलग करके उसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर खलीफा के पद को समाप्त कर दिया

साइमन कमीशन

संग 1919 के भारत सरकार अधिनियम के कार्यों की जांच करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सन 1927 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन बनाया था इसमें 7 सदस्य थे लेकिन इनमें से एक भी व्यक्ति भारतीय नहीं था 3 फरवरी 1928 ईस्वी में जब यह कमीशन मुंबई पहुंचा तो इसका जबरदस्त विरोध किया लाहौर में इसका विरोध लाला लाजपत राय के नेतृत्व में किया गया था विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस ने अंधाधुंध लाठियों की वर्षा की जिसमें लाला लाजपत राय की सीने में जुटे आई और एक महीने बाद ही उनका आकाशमिक देहांत हो गया 1930 को इस कमीशन की रिपोर्ट आई जिसमें कहीं भी औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना की बात नहीं करी

सविनय अवज्ञा आंदोलन

30 दिसंबर सन 1929 के कांग्रेस अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्ण तरह स्वराज्य का प्रस्ताव पास कर लिया था पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गांधीजी ने 78 सदस्यों के साथ साबरमती आश्रम से 200 किलोमीटर दूर तक गुजरात में समुद्र के तट पर स्थित दांडी गांव के लिए पैदल चले थे 6 अप्रैल 1930 ईस्वी दांडी पहुंचकर नमक बनाकर अंग्रेजी कानून को तोड़ा गांधी जी ने इस आंदोलन में गैरकानूनी नमक बनाने महिलाओं द्वारा शराब की दुकानें अफीम के ठेके विदेशी कपड़ों की दुकानों पर ध्यान देना विदेशी वस्तुओं को चलाना चरखा काटना छुआछूत से दूर रहना विद्यार्थी द्वारा सरकारी स्कूल कॉलेजों को छोड़ना तथा सरकारी कर्मचारियों को नौकरियों से त्यागपत्र देने का आह्वान गांधीजी ने किया यह आंदोलन तेजी से पूरे भारत में फैल गया देश भारत में जनता हड़ताल प्रश्नों और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में भाग लेने लगी

इस आंदोलन की विशेषता यह थी कि महिलाओं ने भी भाग लिया थोड़े समय में ही 60000 लोग जेल में डाल दिए गए थे 5 मार्च 1931 को सरकार और कांग्रेस के बीच में गांधी इरविन समझौता हुआ था वह सराय ने इस बात की घोषणा की कि भारतीय संवैधानिक विकास का उद्देश्य भारत को डोमिनियन स्टेटस देना गांधीजी ने भारतीय संविधानिक सुधारों के लिए बुलाए गए दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया फिर वहां से निराश होकर लौटे और पुणे 1932 ईस्वी में सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ किया 1933में गांधी जी ने अपने आंदोलन की असफलता को स्वीकार करते हुए कांग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और इसी तरह सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति हो गयी

व्यक्तिगत सत्याग्रह

व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रारंभ में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था भारत को युद्ध में सम्मिलित करने के खिलाफ देश के विभिन्न भागों में हड़ताल व प्रदर्शन हो रहे थे तभी गांधी जी ने सत्याग्रह के बजाय व्यक्तिगत सत्याग्रह का प्रस्ताव रखा जिसे कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया 17 अक्टूबर 1940 के सभी को कांग्रेस ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया गांधी जी द्वारा चुनी सत्याग्रह ही एक-एक करके सार्वजनिक स्थलों पर पहुंचेंगे और युद्ध के खिलाफ भाषण देंगे और गिरफ्तारी देंगे विनोबा भावे पहिले सत्याग्रही थी जिन्हें 3 माह की सजा दी गई इन के पश्चात जवाहरलाल नेहरू दूसरे ब्रह्म दत्त तीसरे सत्याग्रही थे इस व्यक्तिगत सत्याग्रह में 30000 लोग पकड़े गए और इन सभी व्यक्तियों ने मिलकर व्यक्तिगत सत्याग्रह को इसके शिखर तक पहुंचाया

भारत छोड़ो आंदोलन

इस आंदोलन की शुरुआत गांधीजी ने की थी भारत छोड़ो प्रस्ताव में गांधीजी ने कहा कि अब मैं आपको एक छोटा सा मंत्र दे रहा हूं वह करो या मरो हम या तो भारत को स्वतंत्र कराएंगे या इस प्रयास मेंमर जाएंगे लेकिन हम अपनी हार को जारी रहने के लिए जीवित नहीं रहेंगे 9 अगस्त की सुबह से पहले ही ज्ञान दिया जी अन्य सहित कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर ली गई थी तथा कांग्रेस को एक गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया इस आंदोलन की कोई निश्चितता नहीं ही योजना नहीं बनाई गई थी

इस आंदोलन में कार्य हड़ताल करना सार्वजनिक सभाएं करना लगा देना से मना करना तथा सरकार का सहयोग करने के बाद की गई इस आंदोलन को ज्ञान दे जी ने अंतिम संघर्ष बताया था और जनता ने अपनी समझ के अनुसार ही मनोभावों को कहा कि पूरे देश में इस आंदोलन का प्रभाव दिखाई देता है खाताधारकों और दावों में शेयरधारक और काम बंधी हुई पुलिस थानों डाकखाना रेलवे स्टेशन पर हमले किए गए कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अधिकांश नेता लोग गिरफ्तारी से बच गए थे इस आंदोलन ने भारत की के लिए मार्ग का निर्माण किया

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