हम्मीर देव चौहान का संघर्षकालीन जीवन

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

हम्मीर देव चौहान का संघर्षकालीन जीवन ; हम्मीर देव चौहान का शासनकाल 1282-1301 तक रहा था। बाणभट्ट के बाद उसका पुत्र जैत्र सिंह (जयसिम्हा) रणथंभौर का शासक बना था। जैत्रसिंह ने अपने जीवन काल में ही अपने छोटे पुत्र हमीर देव को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। हम्मीर देव चौहान का 1282 ईस्वी में राज्य रोहन किया गया। हम्मीर देव चौहान किसी शासन पर बैठते ही दिग्विजय की नीति अपनाते हुए उसने भीमरस के राजा अर्जुन को पराजित करके मांडलगढ़ से कर वसूल किया था। दक्षिण के परमार शासक भोज को पराजित करके उत्तर की ओर चित्तौड़ ,आबु ,वर्धनपुर ( काठियावाड़) ,पुष्कर ,चंपा होता है वह वापस रणथंभौर पहुंचा। रणथंभौर पहुंचकर विजय के उपलक्ष्य में उसने कोटियजन का आयोजन करवाया था।

हमीर देव चौहान ने 17 युद्ध लड़े जिनमें से 16 युद्ध में विजय रहा था। दिल्ली के जलालुद्दीन खिलजी ने हमीर देव चौहान की बढ़ती हुई शक्ति को देखा तो रणथंभौर की ओर रवाना हुआ था।दिल्ली के जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने झाईन से रणथंबोर की ओर बढ़ कर दुर्गे की घेराबंदी कर दी। काफी दिनों के प्रयास के बाद जलालुद्दीन फिरोज खिलजी और सफलता नहीं मिली तो घेरा उठाने का आदेश दे दिया। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने हमीर देव की मजबूरी मोर्चाबंदी को नष्ट करने में सफल रहा। अतः जून 1291 ईसवी में सुल्तान रणथंभौर दुर्ग का घेरा उठाकर दिल्ली की तरफ रवाना हो गया। 1296 ईस्वी में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का भतीजा व दामाद में अलाउद्दीन खिलजी की हत्या का दिल्ली का सुल्तान बन गया था। अलाउद्दीन खिलजी चौहानों की शक्ति को सहन नहीं कर सका हो रणथंभौर जीतने की योजना बनाने लगा था। उसी समय उसे दुर्ग पर आक्रमण करने का एक बहाना भी मिल गया था।

हम्मीर देव चौहान का संघर्षकालीन जीवन
हम्मीर देव चौहान का संघर्षकालीन जीवन

हम्मीर देव चौहान का संघर्षकालीन जीवन

हम्मीर महाकाव्य के अनुसार यह बहाना हमीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के बागी मंगोल मोहम्मद शाह को शरण देना था। मंगल सेनापति मोहम्मद शाह व केहब्रू ने लूट का माल लेकर अलाउद्दीन खिलजी की सेना से बगावत करके हम्मीर देव चौहान के पास शरण ली।

हमीर देव चौहान ने अपनी शरण में आया व्यक्तियों को देने से साफ इन्कार कर दिया था। अलाउद्दीन खिलजी ने क्रोधित होकर रणथंबोर दुर्ग पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने 1299 ईसवी के अंत में उलूग खां और नुसरत खां के नेतृत्व में शाही सेना को रणथंबोर दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए रवाना कर दिया। अलादीन खिलजी की शाही सेना ने रणथंबोर के मार्ग की कुंजी कहलाने वाले झाईन पर आक्रमण कर दिया। उस समय हम्मीर देव चौहान कोटि यजन यज्ञ को समाप्त कर मौन व्रत धारण किए हुए था। हमीर देव चौहान ने अपने 2 सैनिक अधिकारी और भीम सिंह हैं और धर्म सिंह को शत्रु का मुकाबला करने के लिए भेजा। दोनों सैनिक अधिकारियों भी भीम सिंह और धर्म सिंह लूट का माल लेकर वापस रणथंबोर की ओर लौट पड़े।

भीम सिंह और धर्म सिंह रणथंबोर के दुर्ग के निकट पहुंचे तो उन्हें सूचना मिली कि शत्रु की सेना पुणे आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रही है। भीम सिंह ने धर्म सिंह को रणथंभौर भेज कर स्वयं वापस शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए रवाना हुआ। इस बार उलूग खां ने राजपूतों की सेना को परास्त किया। जिसमें भीम सिंह लड़ते हुए मारा गया। उलूग खां रणथम्भौर की ओर नहीं बढ़ कर वापस दिल्ली लौट गया। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने एक बड़ी सेना के साथ उलूग खां और नुसरत खां को पुनः रणथम्भौर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। सेना ने रणथंबोर दुर्ग की घेराबंदी कर उसकी प्राचीरों को तोड़ना प्रारंभ किया था तभी दुर्ग में से आए हुए एक गोल से नुसरत खान की मृत्यु हो गई। इसका पता जब तुर्की सेना को चला तो तुर्की सेना वहां से भागने लगी।

यह देखकर उलूग खां ने अपने भाई अलाउद्दीन खिलजी के पास नुसरत खान की मृत्यु तथा सेना की वापसी का समाचार भेज कर और अधिक सेना भिजवाने का अनुरोध किया। अलाउद्दीन खिलजी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एक विशाल सेना के साथ दिल्ली से रणथंबोर की ओर स्वयं ही रवाना हो गया था। दुर पर घेरा डाला गया। यह गहरा बहुत दिनों तक चला। जब वर्षा ऋतु निकट आने लगी और दिल्ली एवं अवध में भयंकर विद्रोह उत्पन्न की सूचनाएं सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को मिलने लगी तो यह काफी चिंतित हो गया। अलाउद्दीन खिलजी ने छल कपट का सहारा लेकर रणथंबोर दुर्ग को विजय करने का निश्चय किया। अलाउद्दीन खिलजी ने हम्मीर को संदेश भिजवाया कि वह उससे संधि करना चाहता है।

हम्मीर देव चौहान ने अपने दो सेनापति रणमल और रति पाल को संधि करने के लिए शाही शिविर में भिजवाया। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणमल और रति पाल को अधूरा का लालच देते हुए अपनी ओर मिला लिया। इन दोनों से नागरिकों के विश्वासघात के कारण अधूरा के गुप्त मार्ग का पता तुर्की सेना को चल गया जिससे गुप्त मार्ग में तुर्की सेना दुर्ग में पहुंच गई। इतिहासकारों के अनुसार तुर्की सेना के द्वारा 1 वर्ष तक लंबी घेरा बंदी के कारण दूर्ग के भीतर खाद्य सामग्री का भंयकर का अभाव हो गया था।

ऐसी स्थिति में हम्मीर देव चौहान ने दुर्ग में बंद रहना उचित नहीं समझ कर आक्रमण करने का निश्चय किया। आक्रमण करने से पूर्व राजपूत स्त्रियों ने हम्मीर देव चौहान की रानी रंग देवी व उसकी पुत्री पदमला के नेतृत्व में जल जोहर किया। इसके बाद राजपूत सैनिकों ने केसरिया वस्त्र धारण करके अधूरा के फाटक खोल दिए गए तथा दोनों पक्षों में जमकर युद्ध हुआ जिसमें हम्मीर देव चौहान वीरता पूर्वक लड़ते हुए मारा गया। 11 जुलाई 13 से 1 ईसवी को रणथंबोर पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन स्थापित हो गया हम अमीर जैसे विश्वासघाती सेनानायक हो रणमल और अति पालको अलाउद्दीन खिलजी ने यह कहते हुए कि जो अपने स्वधर्म राजा के प्रति निष्ठावान नहीं रह सके उनके भविष्य में स्वामी भक्ति के आशा कैसे की जा सकती है कह के दोनों को मरवा दिया गया।

रणथंबोर के युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी के साथ अमीर खुसरो नामक विद्वान भी था। अमीर हाइट के लिए विश्व में प्रसिद्ध हुआ जिसने अपनी शरण में आए व्यक्तियों को नहीं लौट आए चाहे उसने अपने पूरे परिवार की ही बलि क्यों न देनी पड़े हो। हम्मीर देव चौहान के बारे में कहा गया है कि -“सिह सवन सत्पुरुष वचन, कदली फलक एक बार। तिरिया-तेल, हम्मीर-हठ चढे न दूजी बार ।। हम्मीर देव चौहान ने अपने पिता जय सिया के 32 वर्षों के शासन की याद में रणथंबोर दुर्ग में 32 खंभों की छतरी बनवाएं जी से न्याय की छतरी भी कहते हैं। हमीर देव चौहान ने अपनी पुत्री पद्मला के नाम पर पद्मला तालाब का निर्माण करवाया। हम्मीर देव चौहान के दरबार में बीजादित्य नमक कभी रहता था। हम्मीर देव चौहान की मृत्यु के साथ ही रणथंबोर के चौहानों की शाखा समाप्त हो गई।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *